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Friday, 15 May 2015

कलम से..: खूबसूरत अंजलि उर्फ़ बदसूरत लड़की की कहानी - सुधीर ...

कलम से..: खूबसूरत अंजलि उर्फ़ बदसूरत लड़की की कहानी - सुधीर ...: बहुत खूबसूरत थी वो लड़कपन में।       लड़कपन में तो सभी खूबसूरत होते है।   क्या लड़के , क्या लड़कियां।   पर वो कुछ ज्यादा...

Friday, 23 May 2014

बंज़र छातियाँ - सुधीर मौर्य

कमर पे रखे हुए 
घड़े से छलकते हुए पानी से 
खाली हुए घड़े को 
वापस भर देता है 
उसकी आँख से बहता हुआ पानी 
लोग करते हैं अश्लील इशारे 
पानी से भीग कर  
अधफटे वस्त्र 
चिपक जाते हैं नितम्बो से  
आँख झुका कर निकल जाती है वह 
फ़िक़रे कसती हुई गलियों से
आँगन में सास की गोद में रोते बच्चे को 
उठा लेती है  तड़प कर 
सीने से भींच कर उसका मुह 
लगा  लेती है अपने स्तनों से 
बच्चा बदस्तूर रोता है 
उसकी सुखी छातियाँ 
मना कर देती हैं दूध की बून्द टपकाने से 
भाग पड़ती है वह 
बच्चे  के लिए 
पाव दो पाव दूध लेने 
वह पिलाती है अपने बच्चे को दूध 
जो लाई है वह 
अपने स्तनों का दूध 
किसी चौधरी को पिलाके। 

लोग कसते हैं  
उसपे अश्लील फ़िक़रे 
पूछते है हॅंस हॅंस के 
उसकी देह का किराया 
और वह बच्चे के दूध के लिए 
निचुड़वाती है 
अपनी छातियों का दूध 
जो बंज़र पड़ी हैं 
न जाने कितने सालो से 
आदिवासी धरती की तरह। 

---सुधीर मौर्य

Friday, 20 December 2013

यहाँ मरकज़ में अब रोटी नमक है - सुधीर मौर्य

मिटाना चाहता मुझ को ज़माना 
समझ कर हमको एक मुफलिस दीवाना 

यहाँ मरकज़ में अब रोटी नमक  है 
वहां सोने के बिस्कुट का खजाना     

हुनर आता है तुमको ये अज़ल से 
दबे कुचले गरीबों को साताना     

 करोडो खा के लाखो पर नज़र है    
तिजोरी है कि सुरसा का मुहाना    

उलझो हम हैं उल्फत के सिपाही  
हमारी बाहँ में अब है ज़माना        
 (Abhinav pryas ke oct - dec 2013 ke ank me prkashit meri gazal)
--सुधीर मौर्य 

                      गंज जलालाबाद, उन्नाव, 209869                

Friday, 23 August 2013

सूखे पेड़ हरे पत्ते - सुधीर मौर्य

जनवरी की 
सर्द सडकों के 
दोनों ओर 
हल्की हवा से 
सरसराते 
सूखे पेड़-हरे पत्ते 
मेरी बेबसी पर 
कभी रोते 
कभी हँसते 


बड़ा गहरा 
ताल्लुक है मेरा 
इस सड़क 
और इनके किनारे के 
इन पडों से 
जिन्होंने मुझे 
निहारा था कभी 
मेरे गाँव की 
दोखेज दोशीजा के 
क़दमों से कदम 
मिलाते 
कभी पैदल 
कभी सायकल पर 
प्रीत के 
गीत गुनगुनाते 
कभी हाथों में हाथ डाले 
कभी एक दुसरे को सम्भाले 
ना जाने कितनी बार 
हमने मुकम्मल किया 
ये रास्ता 
बस हम दोनों 
ये सड़क 
और इसकी ओर के पेड़ 
और किसी से 
था वास्ता 
आज भी वही सड़क
आज भी वही हवा 
पर अब वो नहीं 
मेरे क़दमों से कदम 
मिलाने के लिए 
और रंग बदल गया
इन पेड़ों का मेरी तरह 
सूखे पेड़ हरे पत्ते 
मेरी बेबसी पर
कभी रोते 
कभी हँसते            

Wednesday, 6 February 2013

मेरे एक गाँव की लड़की..



Sudheer Maurya
********************
मेरा दिल 
आहे जब 
सर्द-सर्द 
भरने लगा था 
कदम दहलीज पे 
जवानी के जब 
रखने लगा था 
तब मेरे 
आँखों से टकराई थी 
मेरे एक 
गाँव की लड़की
जवानी 
तिफ्ली से उसके 
गले लग के 
हंसती थी
हिरन और 
मोर तकते थे  
जब के चाल 
चलती थी 
उसकी बाहें 
सुनहरी थी 
जुल्फ काली 
घनेरी थी 
नैन फरिश्तों के 
कातिल थे 
होंठ 
दरिया के 
साहिल थे 
कमल से 
बाल महकते थे 
कलश 
सीने में धडकते थे 
मै उससे प्यार करता हूँ 
वो मेरे दिल की 
मंजिल है
मेरे एक गाँव की लड़की 
मेरी उल्फत का 
हासिल है।

सुधीर  मौर्य 
गंज जलालाबाद, उन्नाव 
209869  


Saturday, 26 January 2013

गुल और मय्यत



Sudheer Maurya
*********************

मेरी मय्यत से 
लिपट कर 
वो गुलो का हार 
रो पडा 
शायद 
वो भी 
उसका 
ठुकराया हुआ था 

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
 गंज जलालाबाद, उन्नाव 
209869 


   
 

Monday, 14 January 2013

फ्रेंडशिप बेंड ..



Sudheer Maurya 'Sudheer' 
********************************

लांघ कर 
अपनी अटारी की 
मुंडेर 
मेरी अटारी पे 
आके  
उसने बांधा था 
मेरी कलाई पे 
लजाते - सकुचाते 
फ्रेंडशिप बेंड 
जिसका रंग था 
राजहंस के पंखो जेसा।

बेंड तो बेंड था 
वक़्त के साथ 
टूट कर बिखर गया।
 लेकिन उसका उजलापन 
अब भी मेरी रातों में 
चांदनी बिखेरता है 
मेरी कलाई पर 
तेरी अँगुलियों का लम्स 
अब भी महकता है।

में जब भी देखता हूँ 
अपनी कलाई 
मेरे 
बिछड़े दोस्त मुझे तेरी 
दोस्ती 
याद आती है। 


सुधीर मौर्य 'सुधीर'
ग्राम और पोस्ट - गंज जलालाबाद 
जनपद - उन्नाव ( उत्तर प्रदेश )
 पिन – 209869