हर फैसला मेरे बाबत उसी का था
वो शक्स जो मुझे अब पहचानता नहीं
उसकी यादो के सहारे ही जी लेते
जो वो ख्वाबो में आकर सताता नहीं
नहीं-नहीं ये खबर मेरे दुश्मनों की होगी
उसके बालो में अब गजरा महेकता नहीं
कुछ मेरी भी खता होगी जो वो यूँ खफा हुआ
मेरे शहर में आये और मेरी गली से गुजरता नहीं
मेरी महक का निशां तेरी सांसो में तो होगा
क्या तेरी जबीं पर मेरा लम्स दमकता नहीं
'लम्स' से..
सुधीर मौर्य 'सुधीर'