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Tuesday, 25 December 2012

पर समाज की रीत..



Sudheer Maurya 'Sudheer'
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बरसो बाद 
पतझड़ो के मौसम में
उनका दीदार हुआ..
हाथ में चूडियाँ
पावं में महावर
आँखों में काजल
और
माथे पे सिंदूर..

मुझे देख कर
उनके होठों पे
तैर गई, वही मुस्कान
जो बचपन से 
उनकी सूरत की सहेली रही...
और सच  पुछो तो 
यही मेरे जीवन की 
सबसे बड़ी पहली रही..
हाँ, हम जान ही न पाए
मुझसे प्रीत 
निभाते-निभाते
वो कब गैर हो गये

मुझे खामोश देख
उन्होंने हंस के
मेरा हाल पूछा 
में धीरे से बोल
बस जी रहा हूँ
कुछ ख़ास नहीं
तभी मेरे दिमाग में
विचार कोंधा
उनके चेहरे पे भी
पहले सा उजास नहीं

तभी एक 
चार साल की बच्ची
उन्हें मम्मी कह के
ऊँगली पकड़ के ले चली
बगल से गुजरते 
उनके आँचल के लम्स
ने मुझे 
ये एहसास कराया
अब उनमे  भी 
वो महक ,
वो लहक,
वो चहक - नहीं

शायद उन्हें 
बेवफाई उनकी
चैन से रहने नहीं देती
पर समाज की रीत 
अब भी उनके होठो से
कुछ कहने नहीं देती...

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंजा जलालाबाद, उन्नाव
209869

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