नीले अम्बर के
मंडप तले
वो नीले नेनो का
जादू मुझे बेकल कर गया
कली गुलाबो के से
वो अधरों के स्वर
मेरे लफ्जों को
देखो ग़ज़ल कर गया
काली घटाओ के से
उन जुल्फों का उड़ना
उनके कदमो का लम्स
मेरी झोपडी को महल कर गया
अपने गमो को
आखिर भुला ही बेठे
मेरी आँखों को हाय
फ़साना दर्द का उनका सजल कर गया
'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
०९६९९७८७६३४
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