एक दरिया जो मेरी आँख से बहता है अभी
उसके साहिल पे तेरे नाम की इमारत है कोई
मेरी आँखों के नमकीन पानी की वजह
खंडहर सी दिखती हुई वो मिस्मार सी है
तेरे इश्क में ये बात मैंने कुफ्र की कर दी
तेरी याद में वहां इबादत तेरे बुत की कर दी
न धुप, न कपूर, न लोबान की खुशबू
तेरी यादें , मेरी आंहें, और अश्को की माला
ऐ दोस्त मेरे वजूद ने तुझे इश्क की देवी माना
ना सही प्यार, मेरी इबादत तो कबूल कर ले...
वाह..
ReplyDeleteन सही प्यार मेरी इबादत तो कबूल कल ले....
बहुत बेहतरीन पंक्तिया
सुन्दर रचना...
:-)
जी रीना जी शुक्रिया..
Deleteवाह ... बेहतरीन भाव
ReplyDeleteजी धन्यवाद 'सदा जी' आपक नाम शायद सीमा है...
Deleteसच्चा प्यार होगा तो एक दिन इबादत भी कबूल होगी प्यार भी कबूल होगा बहरहाल प्यारी रचना के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeleteजी जरुर..आप का बहुत धन्यवाद्
Deleteइबादत एक ज़रिया है, हृदय की बात कहने का।
ReplyDeleteखुदा को मानना ही तो, हमारा फर्ज बनता है!!
आप का बहुत धन्यवाद् ...
Deleteजी सर जी..धन्यवाद..
ReplyDeleteबहुत सुंदर है !
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