सपना था
उस की आँखों में
पढने का, लिकने का
आसमान में उड़ने का
चाँद सितारे पाने का
धनक धनक हो जाने का
वो थी सुन्दर
वो थी दलित
उसका यही अभिशाप था
वो थी मेधावी
बचपन से
पर उसका गरीब बाप था.
आते ही किशोर अवस्था के
उसे गिद्ध निगाहें
ताकने लगी
गाहे बगाहे दबंगों की
छिटाकशी वो सुनने लगी
एक रोज़ गावं के उसर में
कुछ हाथो ने
उसको खीच लिया
कपडे करके सब तार तार
जबरन सीने में भीच लिया
वो बेबस चिड़िया
फरफराती हुई
दबंगों के हाथो में झूल रही थी
उस घडी गावं के
उसर में,
कास फूल रही थी
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
पिन- २४१५०२०९६९९७८७६३४/09619483963
BAHUT SUNDAR..
ReplyDeletethanx mam,
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