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Thursday, 28 June 2012

टूटे ख्वाब...




आँख से टूट कर
गिरे हुए ख्वाब को 
वापस जो आँख में 
मैंने सजाने की 
कोशिश  की

यूँ लगा 
दहह्कता शोला
हाथ मैं पकड़ लिया 

क्या टूटे हुए ख्वाब
ऐसे ही जला करतें हैं
तभी तो सभी
ख्वाब टूटने का
गिला करतें हैं....



मेरे कविता संग्रह 'हो न हो' से.... 

4 comments:

  1. बहुत खूब....
    बहुत सुन्दर रचना...
    ;-)

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  2. क्या टूटे हुए ख्वाब
    ऐसे ही जला करतें हैं ??
    ...
    बहुत खूब सुधीर जी !

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  3. BEAUTIFUL CREATION..WAAH..

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