तेरे इश्क में सितमगर कैसे अज़ाब देखे
काँटों पे ज़बीं रखे रोते गुलाब देखे
गैरों की बज़्म में यूं बेरिदा ही झमके
हमने तो रुख पे तेरे हरदम नकाब देखे
बनके रकीबे जां तुम उल्फत में मुस्कराए
मिटा के मुझको तुने कैसे शवाब देखे
इश्क की बला से कोई बच न सका 'सुधीर'
इसके कहर से खाक में मिलते नवाब देखे....
ग़ज़ल संग्रह 'आह' से...
सुधीर मौर्य 'सुधीर'
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