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Wednesday, 26 September 2012

ओ मेरी सुरमई प्रिये !



ओ मेरी सुरमई प्रियतमे
तुम्हे याद है,
जब मुझे अपनी आँखों से
तुम महुवे का रस पिलाती थी
और में मदहोश होकर
तुम्हारी गोद में सर रखकर
लेट जाता था-तब तुम
अपनी नर्म कोमल अँगुलियों से
मेरे बालो में 
कंघी करती रहती थी...

ओ हिरनी सी आँख वाली 
मेरी प्रेयसी
तुम्हे याद है
जब मेरे गालों पर, तुम अपने
केसर से महकते बाल बिखेर देती थी
और में उन बालों के स्पर्श से-
रोमांचित हो
तुम्हे और नजदीक खिंच लेता था
तब तुम मेरी पौरषीय गंध से
अपनी आँखे बंद कर  
मेरे सीने में दुबक जाती थी...

ओ मेरी 
सुरमई प्रिये !


नज़्म संग्रह 'हो न हो' से...

सुधीर  मौर्य  'सुधीर' 
 

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